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निजी अस्पताल मेडिक्लेम नहीं कर रहे स्वीकार, रिपोर्ट के लिए करना पड़ता है लम्बा इंतजार


इंदौर - कोरोना के मरीजों का सरकार की ओर इलाज कराने का दावा खोखला साबित हो रहा है। शासन की ओर से निशुल्क इलाज मिलना तो दूर, उल्टे मरीज निजी अस्पतालों की 'लूट' का शिकार हो रहे हैं। कोरोना टेस्ट के लिए सैंपल लेने से लेकर रिपोर्ट आने तक मरीज को लंबा इंतजार करना पड़ा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि मरीज जब तक पॉजिटिव घोषित नहीं होता, तब तक इलाज शासन की जवाबदारी नहीं है। सैंपल लेने से रिपोर्ट आने तक के इस लंबे इंतजार के बीच अस्पताल मरीज के परिवार को लंबा-चौड़ा बिल थमा रहे हैं। उस पर मनमानी ये कि बिल भुगतान के लिए मेडिक्लेम को स्वीकार करने के बजाय नकद पैसा देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। प्रशासन के अधिकारी अलग-अलग तर्क देकर अस्पतालों की मनमानी का खामोशी से साथ दे रहे हैं। कोरोना की पीड़ा को अस्पतालों के रवैये और अधिकारियों के असहयोग ने और बढ़ा दिया है। प्रदेश सरकार कोरोना के मरीजों का इलाज तो अपनी ओर से करा रही है, लेकिन इस बारे में लिखित आदेश से लेकर अस्पतालों के लिए गाइडलाइन तक जारी नहीं की। सोमवार को कोविड-19 पॉजिटिव महिला मरीज को अस्पताल और प्रशासन के रवैये के बीच इलाज आगे बढ़ाने के लिए 12 घंटे से ज्यादा इंतजार करना पड़ा। देवास की महिला मरीज को कोरोना के लक्षण मिलने और तबीयत बिगड़ने के बाद इंदौर लाया गया था। अरबिंदो अस्पताल के बाहर तैनात अधिकारियों ने उन्हें गुमास्ता नगर स्थित अरिहंत अस्पताल भेज दिया। महिला वहां भर्ती हुई और सैंपल जांच के लिए भेज दिए गए। 26 अप्रैल की रात महिला की पॉजिटिव रिपोर्ट आई। अस्पताल और प्रशासन ने स्वजन को खबर दी कि आगे के इलाज के लिए अरबिंदो अस्पताल शिफ्ट करना होगा।


 

रुपये नहीं दिए तो मरीज के शिफ्ट होने पर लगाई रोक


सोमवार सुबह महिला को शिफ्ट करने की बारी आई तो अस्पताल ने 1.20 लाख रुपये का बिल मरीज के बेटे को दिया और नकद पैसा जमा करने के लिए कहा। बेटे ने कहा कि मेडिक्लेम है तो नकद पैसा क्यों मांगा जा रहा। पूरा परिवार देवास में क्वारंटाइन है तो तुरंत पैसे कैसे लाऊंगा। इस पर अस्पताल ने बिल भुगतान नहीं करने तक मरीज के शिफ्ट होने से रोक लगा दी। मरीज के बेटे के मुताबिक इस दौरान मदद के लिए शहर की कोविड हेल्पलाइन के सभी नंबरों पर फोन लगाया। ज्यादातर पर बात ही नहीं हो सकी। एक जगह से एसडीएम संतोष टैगोर का नंबर दिया। एसडीएम से बात हुई तो उन्होंने कहा कि शासन पॉजिटिव आने के बाद ही इलाज कराएगा। अस्पताल का बिल पॉजिटिव रिपोर्ट आने के पहले का है, लिहाजा बिल भरे दें।



कर्मचारी बोला- लेनदेन में प्रशासन नहीं बोलेगा


मरीज के बेटे ने मेडिक्लेम होने के बावजूद रुपये लेने पर आपत्ति जताई तो एसडीएम ने कह दिया कि अभी चेक या रुपये दे दो, बाद में अस्पताल क्लेम मंजूूरी के आधार पर लौटा देगा। अस्पताल के कर्मचारी धीरज ने भी साफ कह दिया कि अधिकारी ने कह दिया है कि लेनदेन में प्रशासन नहीं बोलेगा, आप बिल ले लो। मरीज को इसलिए भी मदद नहीं मिल सकती, क्योंकि वह दूूसरे जिले (देवास) से है। रात तक बेटे ने 50 हजार रुपये जुटाकर अस्पताल में जमा किए। इस पर अस्पताल ने लिखवाकर लिया कि शेष रुपये वह अगले दिन 4 बजे तक जमा कर देगा। लिखकर देने के बाद मंगलवार दोपहर महिला को लेने प्रशासन की टीम पहुंची और एमआरटीबी अस्पताल के कोरोना वार्ड में भर्ती किया गया।


 

गाइडलाइन जारी नहीं होने से अस्पताल कर रहे मनमानी


घटना के बाद सामने आ रहा कि सरकार सिर्फ मुफ्त इलाज की घोषणा कर भूल गई है। गाइडलाइन जारी नहीं होने से अस्पताल मनमानी कर रहे हैं। मामले पर भाजपा नेता गोविंद मालू ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गाइडलाइन जारी करने और मेडिक्लेम को अस्वीकार कर मरीजों को परेशान करने वाले अस्पताल पर कार्रवाई की मांग की है। युवा कांग्रेस के अभिजीत पांडे ने कहा कि महामारी में इलाज सरकार की जवाबदारी है। मुख्यमंत्री ने घोषणा कर इतिश्री कर ली, लेकिन गरीब परेशान हो रहे हैं। राज्य के नागरिकों को जिले के आधार पर भी इलाज से वंचित नहीं किया जा सकता।


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