प्रदेश का 40% वन क्षेत्र निजी हाथों में देने की तैयारी, पर्यावरणविद् बोले - ग्राम सभा की अनुमति लेना जरूरी
भोपाल (ब्यूरो) - मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की परिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने के नाम पर राज्य के कुल 94,689 वर्ग किमी वन क्षेत्र में से 37,420 वर्ग किमी (40%) क्षेत्र को 30 साल के लिए निजी कंपनियों को देने जा रही है. जबकि प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख राजेश श्रीवास्तव ने सभी सीसीएफ और डीएफओ को परिपत्र जारी कर बिगड़े वन क्षेत्रों (जहां सघन वन नहीं हैं) का चयन करने के लिए कहा है. इसके साथ ही उन्होंने 7 बिंदुओें पर 15 दिन में जानकारी मांगी है. वहीं, जानकारी मिलने के बाद इसकी विस्तृत योजना बना कर पूरा प्रस्ताव अनुमति के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. हालांकि मध्य प्रदेश सराकर के इस कदम से पर्यावरणविद् नाराज हैं. उनका कहना है कि यह वन कानूनों के खिलाफ है. जबकि वन क्षेत्र सामुदायिक संपत्ति है और इसे किसी को देने का अधिकार सरकार को नहीं है. इसके अलावा पर्यावरणविद् की तरफ से दावा किया गया है कि यदि जंगल कोई पीपीपी मोड में लेगा, तो सबसे पहले अपना फायदा देखेगा.
आपको बता दें कि वन विभाग के द्वारा बिगड़े वनों को पीपीपी मोड में विकसित करने की योजना तैयार की जा रही है. जबकि जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की पारिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ किया जाएगा. इसके बाद शिवराज सरकार का वन विभाग एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को अनुमति को भेजा और अनुमति मिलने के बाद इसे पीपीपी मोड पर विकसित किया जाएगा. जबकि पर्यावरणविद् ने इस योजना को संविधान और सुप्रीम कोर्ट की मंशा के खिलाफ बताते हुए अवैध और खतरनाक करार दिया है. साथ ही कहा कि विभाग को बताना होगा बिगड़े वन की परिभाषा क्या है. वन कानून के तहत वन केवल सामुदायिक संपत्ति है. जबकि वन भूमि किसी को देने से पहले ग्राम सभा की अनुमति लेना जरूरी है. वहीं, पर्यावरणविद् की तरफ से कहा गया है कि उड़ीसा के मलकानगिरी में वेदांता का प्रोजेक्ट इसलिए निरस्त कर दिया गया था क्योंकि ग्रामसभा ने अनुमति नहीं दी थी.
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