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प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव की जंग के लिए सब तैयार, बस ऐलान का इंतजार

 


भोपाल (चक्र डेस्क) - मध्य प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव के लिए कांग्रेस, भाजपा सहित तमाम राजनैतिक दल ही नहीं, राज्य निर्वाचन आयोग भी पूरी ताकत से तैयारियों में जुटा हैं. हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के निकाय चुनाव जल्द कराने के आदेश के बाद तो इस काम में युद्धस्तर पर तेजी आई है. भाजपा जहां जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश के साथ बैठकों के जरिए कार्यकर्ताओं के कान में 'बूथ जीता तो चुनाव जीता' का मंत्र फूंकने में जुटी हैं, तो कांग्रेस में भी बैठकों का सिलसिला शुरू है. पार्टी को ईवीएम पर भरोसा नहीं है, लिहाजा वह मतपत्रों के माध्यम से निकाय चुनाव कराने की मांग कर रही है. उधर, राज्य निर्वाचन आयोग ने 3 मार्च को मतदाता सूचियां घोषित करने की बात कही है. इसके बाद आयोग कभी भी नगरीय निकाय चुनावों की तारीखों की घोषणा कर सकता है. यह चुनाव अप्रैल के आखिरी हफ्ते से शुरू होकर मई के पहले हफ्ते तक कराए जाने की संभावना है. अगर ऐसा होता है तो इन्हीं दिनों में कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक की परीक्षाएं भी चल रही होंगी, इसी दौरान चुनावी भोंपुओं का शोर छात्रों के भविष्य को बर्बाद कर सकता है. अगर आयोग इन परीक्षा तिथियों को संज्ञान में लेता है, तो संभावना है कि चुनाव की तारीखें दो महीने और टाल दी जाएं.

407 नगरीय निकायों में होना है चुनाव

बता दें कि राज्य में करीब डेढ़ साल से नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म हो चुका है और एक साल से भी अधिक समय से प्रशासकीय व्यवस्थाओं के आधार पर निकायों का कामकाज संचालित किया जा रहा है. राज्य में कुल 407 नगरीय निकाय हैं, जहां चुनाव होने हैं. इनमें 16 नगर निगम, 99 नगर पालिकाएं और 292 नगर परिषद शामिल हैं. संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि नगरीय निकाय हों या पंचायत निकाय, कार्यकाल पूरा होते ही चुनाव कराए जाने चाहिए. कार्यकाल समाप्त होने की स्थिति में प्रशासक की नियुक्ति अधिकतम 6 माह के लिए हो सकती है, लेकिन मप्र में करीब डेढ़ साल से यह चुनाव कतिपय कारणों से टल रहे हैं. पहले कमलनाथ सरकार ने चुनाव की तारीख बढ़ाई और बाद में शिवराज सरकार भी इसे टालती रही. इसके बाद कोरोना महामारी के चलते चुनाव आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया था. सरकार की मंशा छह महीने तक चुनाव टालने की थी, लेकिन अन्य राज्यों में निकाय चुनाव हो जाने का हवाला देते हुए लगाई गई याचिकाओं पर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ का फैसला आ गया.

तैयारियों में जुटा राज्य निर्वाचन आयोग

राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारियों पर नजर डालें तो जिला निर्वाचन कार्यालयों में दावे-आपत्तियों का निराकरण कर वोटर लिस्ट को अंतिम रूप दिया जा रहा है. वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई हैं. सूची में मृत लोगों के नाम तक बड़ी संख्या में जुड़े हैं. बता दें कि हाल ही प्रोटेम स्पीकर रहे रामेश्वर शर्मा ने कहा था कि घर-घर जाकर वोटर की पड़ताल किए बिना मतदाता सूचियों को ठीक नहीं किया जा सकता, इस बार राज्य में यह काम कहीं नहीं किया गया है. सूचियां वैसी बन रहीं, जैसे अंडरवर्ल्ड डान अबू सलेम की प्रेमिका मोनिका बेदी का भोपाल से पासपोर्ट बन गया था. आखिर वास्तविक वोटरों को मताधिकार से वंचित तो नहीं किया जा सकता.

टल भी सकते हैं निकाय चुनाव

तय समय के लगभग डेढ़ साल बाद अप्रैल-मई में प्रस्तावित नगरीय निकाय चुनाव एक बार फिर टाले जा सकते हैं. इसके पीछे दो वजहें बताई जा रही है. पहली तो अप्रैल-मई में 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के अलावा 9 और 11 वीं की परीक्षाएं भी चल रही होंगी. ऐसे में चुनावी शोर तो छात्रों को डिस्टर्ब करेगा और दूसरे अप्रैल और मई के पहले सप्ताह में दो या तीन चरणों में चुनाव कराए जाते हैं, तो मतदान केन्द्र कहां बनेंगे, क्योंकि ज्यादातर मतदान केन्द्र तो स्कूल या कॉलेजों में बनाए जाते हैं और उनमें शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती है.

अतिरिक्त तैयारियों के लिए दलों को वक्त की दरकार

कहा यह भी जा रहा है कि चुनाव तारीखें टलने से राजनीतिक दलों को तैयारियों का और मौका मिल जाएगा. क्योंकि कांग्रेस निकाय चुनाव में पिछला प्रदर्शन सुधारने और भाजपा प्रदर्शन को दोहराने के लिए अतिरक्त समय चाहती हैं, हालांकि ऐसा प्रदर्शित दोनों में से कोई भी दल नहीं कर रहा है. बता दें कि 2014-15 में जब प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव हुए थे, तो राज्य के सभी 14 नगर निगमों में भाजपा का कब्जा था, अधिकांश नगरपालिकाओं और नगर परिषदों में भी भाजपा बहुत में थी. इस प्रदर्शन को दोहराने के लिए अतिरिक्त तैयारियों की जरूरत में महसूस की जा रही है.

एक्शन मोड में पार्टियां, तैयारियों में भाजपा आगे

नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, शिवसेना सहित तमाम दलों के उम्मीदवार और निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में होंगे. हर दल ने एक सूत्रीय सिद्धांत अपनाया है कि जिताऊ छवि वाला ही उम्मीदवार बन कर मैदान में उतरेगा. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वीडी शर्मा से लेकर तमाम वरिष्ठ नेता जिला, संभाग और बूथ स्तर तक लगातार बैठकें ले रहें हैं. कल तक केवल युवा चेहरों को ही संगठन और निकाय चुनाव में तरजीह देने की बात कहने वाले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के सुर भी दो दिन पहले सतना मे हुई बैठक में बदले नजर आए, उनका कहना था कि उन्हें 60 की उम्र वाले नेताओं से भी कोई परहेज नहीं है. महापौर, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद के लिए टिकट जिताऊ चेहरे को ही मिलेगा. बता दें कि भाजपा ने तीन चरणों की प्रक्रिया में उम्मीदवारों के चयन का फैसला किया है. सबसे पहले पार्टी की जिले की चुनाव समिति नगर परिषद के टिकट तय करेगी, दूसरा-संभाग स्तर पर नगर पालिका और पार्षदों के नामों को मंजूरी मिलेगी, तीसरा महापौर का चुनाव राज्य स्तर की चुनाव समिति तय करेगी.

तैयारियों में पिछड़ रही कांग्रेस

निकाय चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारियों पर नजर डालें तो वह भाजपा के मुकाबले काफी पिछड़ी दिखती है. अपने-अपने स्तर पर दिग्विजय, कमलनाथ, अरूण यादव जैसे वरिष्ठ नेता जोर मारते दिखते हैं. लेकिन गुटबाजी से पार्टी उबर नहीं पा रही. पिछले दिनों भोपाल में हुई बैठक के दौरान कांग्रेस नेताओं की आपस में जूतम-पैजार जैसी घटनाओं से जनता में गलत संदेश गया है. संभवतः यही वजह है कि कांग्रेस को इस चुनाव में ईवीएम पर भरोसा नहीं रह गया है. दिग्विजय सिंह ने राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त बीपी सिंह को ज्ञापन सौंपकर नगरीय निकाय चुनाव ईवीएम की जगह मतपत्रों से कराने की मांग की हैं, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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