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आंकड़ो का खेल कहीं कर ना दे रणनीति फेल



चक्र डेस्क (पं प्रमोद मेहता) - सरकार महज दावों के सहारे यह दिखाने की कोशिश में लगी है कि वह कोरोना के खिलाफ कारगर लड़ाई लड़ रही है। जबकि जमीन पर दशा यह है कि शहरों में तबाही मचाने के बाद कोरोना विषाणु अब राज्य के गांवों का रुख कर चुका है और वहां से भी संक्रमण फैलने की खबरें आने लगी हैं। कोरोना के आंकड़ों में कमी राहत की बात है। कुछ दिन पहले संक्रमितों का रोजाना आंकड़ा चार लाख से ऊपर बना हुआ था। यह अब तीन लाख के नीचे आ गया है। हालांकि इसकी एक वजह जांच में कमी को माना जा रहा है। जब जांच कम होगी तो मामले भी कम निकलेंगे। पर इससे भी इनकार नहीं किया जाना चाहिए कि ज्यादातर राज्यों ने जो पूर्ण या आंशिक बंदी की है, उसका असर जरूर पड़ा होगा। फिर, पिछले साल के मुकाबले इस बार दूसरी लहर को लेकर लोगों के भीतर खौफ भी कम नहीं है। लोग घर से निकलने से बच रहे हैं। ऐसे में संक्रमण के फैलाव को रोकने में मदद तो मिली है। बहरहाल, आंकड़ों के हिसाब से तो हालात में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं। पिछले छह दिनों में उपचाराधीन मामलों में भी साढ़े तीन लाख से ज्यादा की कमी दर्ज की गई। जाहिर है, मरीजों के ठीक होने की दर भी बढ़ रही है। 29 अप्रैल को जहां यह 81.90 फीसद थी, वहीं 15 मई को 84.78 फीसद दर्ज की गई। इससे विशेषज्ञों को उम्मीद बंधी है कि हालात जल्दी ही इस साल जनवरी के स्तर तक आ जाएंगे। जनवरी में मरीजों के ठीक होने की दर सतानबे फीसद थी। लेकिन इस मुगालते में रहना कि संकट टल गया है, ठीक नहीं है। सुधार की रफ्तार भले दिखने लगी हो, लेकिन मौतों का आंकड़ा अभी भी चिंताजनक है। जब मामले चार लाख के ऊपर थे, तब भी रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा साढ़े तीन से चार हजार के बीच बना हुआ था। और आज जब संक्रमितों का रोजाना का आंकड़ा दो लाख पैंसठ हजार के करीब आ गया है तब भी मौतों का प्रतिदिन का आंकड़ा चार हजार के ऊपर है। इससे पता चलता है कि दो से तीन हफ्ते पहले जो संक्रमित भर्ती हुए होंगे, उनकी स्थिति ज्यादा गंभीर रही होगी। 

माना जाता है कि संक्रमण और मौत के बीच दो से तीन हफ्ते का अंतर रहता है।ऐसे में अगर अब संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं तो मौतों के आंकड़ों में कमी आने में दस से पंद्रह दिन अभी लग सकते हैं। अभी भी ज्यादातर उपचाराधीन मरीज सघन चिकित्सा में हैं। ऐसे में आने वाले दो-तीन हफ्तों में मौतों का आंकड़ा कितना कम या ज्यादा होता है, इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है। भूलना नहीं चाहिए कि देश में अब तक कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा ढाई करोड़ पार कर चुका है और दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में भारत दूसरे नंबर पर है। अब चुनौती यह है कि ज्यादा से ज्यादा जांच हों, ताकि संक्रमितों का तत्काल पता चल सके। इस वक्त करीब सोलह लाख लोगों की रोजाना जांच हो रही है। लेकिन आबादी के हिसाब से यह नाकाफी है। जांच रिपोर्ट आने में ही कई-कई दिन लग रहे हैं। बड़े शहरों को छोड़ दें तो गांव-कस्बों में तो जांच का वैसा इंतजाम नहीं है। और जांच कितनी सही, कितनी गलत निकल रही हैं, यह अपने में बड़ी समस्या है। ऐसे में संक्रमितों की सही-सही तादाद का पता नहीं चलता। महामारी से निपटने में यह बड़ी समस्या है। उधर, टीकाकरण अभियान में भी रोड़े कम नहीं आ रहे हैं। राज्यों के पास पर्याप्त टीके नहीं हैं। कंपनियां रातों-रात तो मांग पूरी कर नहीं सकतीं। सवाल है कि जब जांच जैसी बुनियादी जरूरत पूरी होने में ही अवरोध आ रहे हैं तो संक्रमितों या मौतों का सही आंकड़ा सामने आएगा भी कैसे!

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