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बैंकों के बाहर लगी भीड़ दर्शाती है जमीनी हकीकत से रूबरू नहीं नियम कायदे बनाने वाले


गुना ( पं शिवकुमार उपरिंग) - 
कोरोना के इस भीषण काल में जब चारों तरफ कोरोना कर्फ्यू कहीं लॉकडाउन शादी विवाह जैसे कार्यक्रमों पर भी रोक या कम संख्या में उपस्थित लोगों के बीच में कार्यक्रमों का संपन्न होना अंतिम संस्कार के कार्यक्रमों में भी कम जनसंख्या में लोगों का जाना सभी धार्मिक सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों पर रोक कुल मिलाकर कृषि उपज मंडियों को भी बंद रखना आदि यही दर्शाता है कि पब्लिक गैदरिंग ना हो भीड़ कहीं भी किसी भी तौर पर इकट्ठे ना हो पर जान के साथ जहान को भी चलाना है इसलिए विशेष परिस्थिति में कई सरकारी ऑफिस प्राइवेट कार्यालय कम  कर्मचारियों के साथ खोले जा रहे हैं जरूरी भी है पर एक अनोखे नियम या उसे हम एक गलत आदेश भी कह सकते हैं उसने लोगों की परेशानियों को बढ़ा दिया है ऐसे  नियम कायदे बनाने वाले लोग शायद जमीनी हकीकत से कोसों दूर रहते हैं गौरतलब है कि बैंकों का समय घटा कर सुबह 10:00 बजे से दोपहर के 2:00 बजे तक कर् दिया है इस कोरोना काल में लोगों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है बैंकों में लेन-देन करने के लिए दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी  शहर में आते हैं वृद्ध लोग अपनी पेंशन आदि बेंक से निकालने के लिए भी सुबह से लाइन में खड़े देखे जा सकते हैं महिलाओं को और भी अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता अचानक किसी को पैसों की जरूरत पड़ जाए और अगर वह पैसे बैंक से ही निकालना हो तो कम समय सीमा के कारण कई बार बाहर से ही। लौटना पड़ता है दूसरी बात कम समय सीमा के कारण बैंकों के बाहर भीड़ बनी रहती है अंदर बैठे बैंकों के प्रबंधक या अन्य कर्मचारियों को कोई मतलब नहीं है वह तो नियम कायदे के कारण लकीर के फकीर बने बैठे रहते हैं और अपना काम धीमी गति से करते रहते हैं काश कोई जनमानस की परेशानियों को समझें और नियम कायदे जनता की परेशानी को बढ़ाने के बजाय उनकी परेशानियों को कम करने के लिए बनाए जाएं तो बहुत ही अच्छा होगा    


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