रायसेन (निप्र) - राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने शुक्रवार को राजधानी से 28 किमी दूर राजाभोज की प्राचीन नगरी भोजपुर पहुंचकर विश्व के सबसे विशाल पाषाण शिवलिंग के दर्शन किए। सुबह 11 बजे राज्यपाल पटेल मंदिर परिसर पहुंचे और भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। वे मंदिर के गर्भगृह में पहुंचे। जहां पुजारियों ने मंत्रोच्चार के साथ राज्यपाल से भगवान शिवजी का पुष्पों से अभिषेक कराया। पूजन-अर्चन के बाद उन्होंने मंदिर और आसपास के प्राकृतिक वातावरण को देखा। राज्यपाल ने पर्यटकों को सुलभ भ्रमण और जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं. वहीं पर्यटन स्थलों को संवारने की भी बात कही। गौरतलब है कि परमार वंश के राजा भोज ने वर्ष 1010 से 1053 के बीच भोजपुर में विशाल शिव मंदिर का निर्माण काराया था। देश में भोजपुर मंदिर जैसा दूसरा अन्य कोई मंदिर नहीं है। पश्चिम मुखी शिव मंदिर 32.25 मीटर लंबे तथा 23.50 मीटर चौड़े तथा पांच मीटर ऊंचे चबूतरे पर निर्मित है। बाहर से मंदिर का गर्भगृह 19.50 मीटर तीन ओर से तथा अंदर से 13 मीटर चौकोर निर्मित है। गर्भगृह के मध्य में जलाधारी सहित विशाल शिवलिंग हैं। इनकी विशालता के कारण ही इसे उत्तर के सोमनाथ की संज्ञा दी गई है। जलाधारी सहित शिवलिंग की ऊंचाई 6.70 मीटर है। जलाधारी के ऊपर शिवलिंग का लगभग 2.25 मीटर भाग देखा जा सकता है। जलाधारी चौकोर है जिसकी ऊंचाई 4.40 मीटर है। जलाधारी का ऊपरी भाग एकाश्म है, जिले माला के समान शिवलिंग में पिरोया गया है। इस मंदिर की एक अन्य विशेषता यह है कि इसका प्रणाल गोमुखी न होकर मकरमुखी है। प्रणाल भूमिगत होती हुई उत्तर दिशा में निकलती थी, परंतु जलाधारी क ऊपरी भाग के भग्न हो जाने के कारण इसके केवल अवशेष ही देखे जा सकते हैं। अपनी अद्भुत निर्माण कला व विशालता के कारण यह विश्व प्रसिद्ध है। देश-विदेश के हजारों पर्यटक यहां प्रतिवर्ष मंदिर देखने के लिए आते हैं।
भीमबैठका की प्राचीनता व प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत हुए
राज्यपाल भोजपुर शिव मंदिर के दर्शन करने के बाद होशंगाबाद मार्ग पर औबेदुल्लागंज के निकट विश्व संरक्षित धरोहर भीमबैठका के शैलचित्र व गुफाएं देखने पहुंचे। उन्होंने गुफाओं में बने शैलचित्रों को देखकर प्रसन्नाता व्यक्त की। भीमबैठका के शैलाश्रय देखने के बाद वे रायसेन- सीहोर जिले की सीमा पर रातापानी अभयारण्य क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए चले गए। गैरतलब है कि भीमबैठका में आदिमानव का निवास करीब आठ लाख वर्ष पूर्व माना गया है, परंतु यहां के शैलचित्र लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व के बताए जाते हैं। भीमबैठका के शैलाश्रयों की खोज का श्रेय डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर को दिया जाता है। उन्होंने इस स्थल की खोज 1956-57 में की थी। भीमबैठका में 500 से अधिक चित्रित शैलाश्रय हैं। यहां चित्र बनाने में लाल, सफेद व हरे रंग का प्रयोग किया गया है। यहां के शैलाश्रय 10 किमी लंबे तथा पांच किमी चौड़े क्षेत्र में फैले हैं। यहां शैलचित्रों में घुड़सवार, मोर, हाथी, शेर, हिरण, बारहसिंगा, गाय, बंदर, जंगली सूअर, भैंसा, वृषभ, नीलगाय, गेंडा इत्यादि जानवरों के चित्र मिलते हैं।
डिकिनसोनिया की छाप
पिछले वर्षों अमेरिका से कुछ पर्यटक यहां आए थे। उन्होंने यहां पर पृथ्वी के सबसे प्राचीन जानवर करीब 48 करोड़ वर्ष पुराने डिकिनसोनिया की छाप होना बताया था। इन विदेशी पर्यटकों की रपट अमेरिका में प्रकाशित गोंडवाना विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद से पुरातत्व विभाग का ध्यान इस ओर गया और उन्होंने डिक्किन सोनिया की छाप वाले शैलाश्रय को विशेष रूप से संरक्षित कर लिया है।
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