याद कीजिए 2018 का विधानसभा चुनाव, शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री के तौर पर एक और पारी खेलने के कगार पर और निमाड की राजनीती में अंतर्कलह का बोलबाला सत्ता धारी दल के पदासिन नेता से लेकर, इनके सब्जबाग से जुड़े छोटे छोटे कार्यकर्ताओं ने पार्टी के साथ भीतरघात करने में कोई कसर न छोड़ी और निर्दलीय प्रत्याशी का काम खुलकर किया था !ये नेता और कार्यकर्ता कौन थे! आखिर इन पर कार्यवाही की गाज क्यों नही गिरी
आज लोकसभा के उप चुनाव का बिगुल बज चुका है घूले तैयार है, बाराती सजकर बाहर निकल चुके है, क्या ये वही बाराती तो नही जो 2018 में भी सजकर बाहर निकले थे? राजनेतिक दलों का मूल मंत्र होता है विपक्षी पार्टी के नेता को प्रतिद्वंदी मानकर चुनाव के जरिए पराजित करना। जिसमे जनता की अदालत सर्व शक्तिमान होती है। क्या यह सच नहीं लोकसभा के उप चुनाव में पार्टी के अपने लोकतंत्र और मानकों से परे बड़ा वर्ग द्वारा साजिशे रची जा रही है। दोनो बड़े राजनेतिक दल संदेह और लेखन को मिथ्या बता अपने नेताओ के दामन को साफ करने का प्रयास कर एक जाजम में बिठाने का प्रयास करे पर चिंतन वही इस उपचुनाव में दामन किसका साफ है ? चुनाव घोषणा के पूर्व कई घटनाओं ने जन्म लिया है, इस बात से इंकार नही किया जा सकता, शायद उन्ही घटनाओं के बाद संदेह और बड़ गया था बुरहानपुर विधानसभा में तीसरा गुट जन्म लें सकता है और उसके पोषक भी टैक्टर को गति देने वाले नेता हो सकते है। अगर लेखन में मिथ्या और शब्दों को आधारहीन बताया जाएगा फिर इसका जवाब कौन देगा अब तक सत्ता धारी दल में कार्यकताओं की पूछ परख बड़ी नही और सूचनाओं से इतर अलग रखा जा रहा है। और विरोध के स्वर उठ भी रहे है पर जिले के मुखिया पूरे घटना क्रम पर मौन ही है जिस कारण भ्रम का दायरा बढ़ता जा रहा है। गोरतलब तथ्य यह है, बुरहानपुर, नेपानगर क्षैत्र में असंतोष की ज्वाला क्या मतदान के आते आते भभक जाएगी।
वैसे यह भी नही भूलना चाहिए राजनेतिक दलो में सत्ता में रहते और विपक्ष में होते हुए भी गुटबाजी के दंश से बाहर नही निकल सके है। यही कारण है आम मतदाता दबी जुबान कहने से नही चुकता बुरहानपुर नेपानगर में पदो पर आसीन नेता ही पार्टी के लोकतंत्र का गला घोटते है। जिस कारण प्रत्याशी हारता और कार्यकर्ता उपेक्षित होता जाता है।
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