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अब तक पूर्ण विश्वास में क्यों नही आ रहे प्रत्याशी,,,,,,,,,

सूरज की पहली किरण के पहले ही कलेंडर की तारीख बदल जाती है, दिनांक 23 और दिनांक 30 के बिच मात्र 6 दिन का अंतर शेष है। भाजपा और कांग्रेस लोकसभा उप चुनाव की कसरत कर रहे है, बावजूद दोनो ही दल के नेता और प्रत्याशी पूर्ण विश्वास में नजर नही आ रहे और कार्यकर्ताओं की जुबान भी अपने नेताओ को लेकर विश्वसनीय नही बन पा रहि है। यही कारण है, भाजपा प्रत्याशी को बुरहानपुर छोर पर तो कांग्रेस को खंडवा के आगे दमदार बताने वाला वर्ग भी बड़ा प्रतिशत तठस्थ नजर नहि आ पाया है। यही कारण है बड़ी आम सभा और बड़े नेताओ के जमावड़े और भाषण के बाद भी इन आने वाले छःदिन और अंतिम रात का इंतजार करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

       चक्र डेस्क (राकेश चौकसे) -  अंदर खाने एक वर्ग ऐसा भी है जो यह मानता है, 2018 वाला खेल दोहराने के संकेत के रुप में लोक सभा के इस उप चुनाव को देख रहा है। क्या इस वर्ग को आंतरिक और मौन बगावत समझने के बाद मतदान वाले दिन कुछ धुंधली तश्वीर संजय दृष्टि रखने वाले बुद्धिजीवी वर्ग को नजर आ रही है। अगर इस पहलू पर गोर फरमाए तो कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी का भविष्य अब भी उज्जवल नही होने के पीछे बड़े नेताओ का ही हाथ है,जिन्होंने कभी अनुशासन हीनता पर अनुशासन का डंडा चलाया हो। कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहि है, लंबे अर्से तक सत्ता सुख भोगने वाली इस पार्टी का भविष्य कभी कमजोर नही हो सकता हा, दो से तीन सो का आंकड़ा पार करने वाली भारतीय जनता पार्टी की तासीर पर आंच आ सकती है, क्योंकि 2014के बाद इसके वोट प्रतिशत में इजाफा होने की संभावना कम ही दिखाई देती है। अल्पसंख्यक, और पिछड़ा वर्ग शने: शने: नए गठजोड़, नए समीकरण निर्मित कर रहा है। इसकी पुष्टि हाल के दिनो पहले देश के अन्य राज्यों में हुए विधान सभा चुनाव से कर सकते है, भारतीय जनता पार्टी के उम्मीद्वार को हराने के लिए अंदर ही अंदर मतदाताओ का ब्रेनवाश कर दीया गया था। राष्ट्रीय पार्टियों ने भले खाता नही खोला हो, भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों की जीत पर रोड़ा अटकाया है। निमाड़ की राजनीति में देश के अन्य राज्यों नया परिवर्तन ला दीया है, देश के विपक्ष और इनका ऐजेंटा अहम रहा  है। इसमें कांग्रेस की हालत सबसे ज्यादा पस्त हुई है। हालत से भी उसे लगने लगा है, अगर यह अवसर उसने गवा दीया तो आने वाले समय उसके पास पाने के लिए कुछ बचेगा नही। क्योंकि इस उपचुनाव के बाद पंचायत चुनाव के लिए चुनाव आयोग कमर कसेगा, और वह परिस्थिति देख चुनाव की घोषणा कर सकता है, अगर चुनाव की तारीख तय हों जाती है तब प्रदेश की राजनीति में आम आदमी पार्टी तीसरी ताकत बनकर उभर सकती है, और आम आदमी के पास बिजली बिल, पानी टैक्स जादू की छड़ी के रुप में है। तीसरी ताकत कांग्रेस की हवा का रुख मोड़ने का दम भर सकती है। उप चुनाव से भाजपा, कांग्रेस का गणित बनेगा भी, बिगड़ेगा भी,,,,

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