ग्वालियर (निप्र) - डबरा के पास खेड़ी रायमल गांव में लोगों की अंतिम यात्रा पैदल चल कर नहीं, बल्कि नदी में तैर कर निकालनी पड़ती है। साल के बारिश के चार महीने तो यही हाल रहता है। हाल में गांव के बुजुर्ग की मौत हो गई। उनके शव को भी लोग कंधे पर रखकर कंधे तक डूबकर नदी पार कर श्मशान घाट तक ले गए। किसी ने इसका वीडियो बना लिया। गांव के लोग बताते हैं कि जहां श्मशान घाट बना है, वहां जाने का एक ही रास्ता है। बीच में नोन नदी पड़ती है। मानसून के चार महीने और ठंड के कुछ महीने यहां पानी भरा ही रहता है। इस कारण शवयात्रा लेकर इसी तरह नदी पार कर जाना पड़ता है। गर्मी में पानी सूख जाता है, तो रास्ता नजर आता है। गांव के सरपंच सरनाम सिंह बताते हैं कि गांव में वैसे कई रास्ते हैं। जिससे बाहर आया जा सकता है, लेकिन सरकार ने श्मशान घाट जहां बनाया है वहां जाने का यही मात्र रास्ता है। गर्मी में तो यह रास्ता मैदान होता है, लेकिन असल में यह नोन नदी का भराव क्षेत्र है। बरसात आते ही नदी में पानी आता है, तो यह जगह पानी से लबालब हो जाती है। पूरे मानसून और उसके दो महीने ठंड के यहां से शवयात्रा को लेकर जाना किसी चुनौती से कम नहीं है। इतना ही नहीं चौमासे या नदी के उफान पर होने के कारण कई बार गांव में किसी की मौत हो जाए तो शव को दो या तीन दिन घर में ही रखना पड़ता है।
गांव के लोग पुलिया की कर रहे मांग
गांव के निवासी विद्याराम शर्मा बताते हैं कि गांव में इस नदी पर पुलिया बनाने के लिए कई बार प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं। डबरा कार्यालय में आवेदन कर चुके हैं। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को भी आवेदन देकर मांग कर चुके हैं, लेकिन गांव के लोगों का दर्द किसी को नजर नहीं आ रहा है। गांव के सरपंच सरनाम सिंह ने बताया कि इस गांव में 1000 की वोटिंग है। लगभग 400 परिवार यहां रहते हैं। कभी न कभी किसी न किसी परिवार में हादसा होता ही है। ऐसे में गांव के लोग इस रास्ते पर नदी से ही शवयात्रा को लेकर गुजरते हैं, तो कष्ट होता है।
Comments
Post a Comment