2021 लोक सभा का उपचूनाव
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर में दिखाईं देने वाला यह चुनाव समय के साथ बदलाव की ओर रुख कर गया। क्या? अर्ज, अर्जी, अर्जी चुनाव लडने की, सत्ता और संघठन में टिकिट का सामंजस्य नही बैठ पाया तो, फर्ज, फर्ज पुराने हिसाब की अदायगी का , फर्ज व्यापार को फली भूत करने का चुनाव में नजर आया, कर्ज टैक्टर की धुल से फेले संक्रमण से मुक्त होने का।
(चक्र ब्यूरो - राकेश चौकसे की कलम से) - क्या बुरहानपुर विधानसभा क्षैत्र का मतदाता 2018 के विधानसभा चुनाव और चुनाव प्रचार के तरीके को भुला सकता है , क्या इसे भुलाया जा सकता है सत्ताधारी दल के लोग टैक्टर की कमान सम्हालते हुए पार्टी को सत्ता से बेदखल कर सत्ता की गिरावट का जुआ नही खेल रहे थे । क्या हम भूल सकते है सत्ता और पार्टी के संगठन में उच्च पद पर बैठे नेता सत्ता के मापदंड कूदके पर रख सत्ता का अनुशासन भंग कर मूह चिड़ा, गांधारी का आवरण ओड़ने का नाटक में कर रहे थे । और इस पूरे प्रकरण में सत्ता मौन थी। इसके मायने क्या ?2018 के चुनाव को भोपाल वाले संजय की नजर से देख रहे थे या देखने का नाटक कर रहे थे क्या यह सच नहीं 2018 के चुनाव का भावार्थ 2021 के इस उप चुनाव में अर्ज, फर्ज, और कर्ज के खेल और खेल की मुक्ति के रुप में दिखा जिसे निमाड़ के समूचे संसदीय क्षैत्र ने देखा। कितनी विडंबना है, इस चुनाव में 2018 का ही खेल खेला जा रहा था। और दर्शाया ऐसे जा रहा था नेता तन, मन धन से लगे हुए है। क्या भोपाल के नेताओ को या समझने में देर लगेगी शरीर कमल के झंडे के साथ खड़ा होने के वावजूद हरकत टैक्टर वाली इस चुनाव में हो रही थीं। अगर ऐसा नही है तब नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक एक वर्ग शुरू से अंत तक अपनी डफली और अपना राग के साथ सोशल मीडिया में दिखाईं दे रहै थे के मायने क्या निकाले ?
2021 चुनाव का अंक गणित और वोट में इजाफा मंत्री तुलसीराम सिलावट जी के सधन जनसंपर्क, कार्यकर्ताओं से मेलजोल के बूते, अर्चना दीदी के अनुभव, राजनितिक पकड़, और नेपानगर में प्रतिनिधित्व क्षेत्र की पहचान के बल पर, रामदास काका का गावरानी प्रेम, आम जानमानस से पारिवारिक प्रेम के कारण मतदाताओं की सीधी पसंद,, राजू रामदास शिवहरे का युवाओं में रुतबा, विपक्षी दल में सम्मान, रमेश पाटीदार ,राजू पाटीदार ,पाटीदार बंधुओ में आपसी सम्मान, चाणक्य सोच, मतदाताओ को प्रभावित करने की ताकत के बूते विधानसभा चुनाव में इनको सोपे गए हर बूथ पर लीड ओम चौकसे की मेहनत, मंत्रियों से मेलजोल नेपानगर में बडत का आंकड़ा 35000, पेतीस हजार करने में सहायक रहा । यही स्तिथि बुरहानपुर में निर्मित हुई 1952,57 से लेकर 2021 तक भारतीय जनता पार्टी ने शहरी क्षैत्र में बडत हासिल नही की इस चुनाव में 15 हजार से ज्यादा की बडत के पीछे भी मंत्रियों वर्ग के साथ अर्चना दीदी की मेहनत, प्रत्याशी का मधुर संबंध, गज्जू पाटिल का हर वर्ग से तालमेल, और युवाओं के बिच पकड़ का नतीजा और सघन जनसंपर्क कामयाब रहा तो, रुद्रेश्वर एंडोले जी का सेनापति जैसा स्वरूप दीदी के प्रति समर्पण का भाव, पूर्व निगम अध्यक्ष मनोज तारवाला का मार्गदर्शन, अजहर उल हक की अल्पसंख्यक वर्ग में दोस्ती, आशीष शुक्ला की लालबाग के युवाओं में पेठ का नतीजा ही है वार्ड और बूथ में भाजपा के आंकड़े बडत दिखा रहे है। जो जीत की स्क्रिप्ट के लिए ठीक ठाक रहे है। कांग्रेस को लेकर साफ़ शब्दों में मैं नही लिख सकता किन्तु सत्ता का प्रभुत्व हासिल करना इसकी अपनी संस्कृति का लक्ष्य है, या साम्राज्य वाद की तरह यह लक्ष्य पाना चाहती है समझ में नही आ रहा। लिखने का तात्पर्य यह है कांग्रेस चुनाव अब तिरछी नजर से लडने लगी है। और इसका नेता और इसका निर्णायक मतदाता पूर्णतः व्यापारी वर्ग के रुप में खडा नजर आने लगा है यही कारण है 2018 की 15से 25 हजार वोट लेने से उपजी समस्या का ही हिस्सा पश्चिम बंगाल में शून्य सीट में दिखाई दीया था । कभी सत्ता का केंद्र रहि कांग्रेस प्रत्याशी अन्तिम दौर में वेशाखी पर नजर आने लगता और क्या कारण है कांग्रेस चुनाव के अन्तिम दौर में नजर तिरछी कर चुनाव लड़ती दिखाई देने लगी है।
क्या कारण है 100 सालसे ज्यादा पुरानी पार्टी का वह वर्ग जो दिल्ली में बैठकर देश की राजनीत के समीकरण बनाता है वह क्षेत्रीय चुनाव में पस्त हो जाता है। अर्ज, फर्ज और कर्ज, के बुनियादी ढांचे के समीप नजर आने वाले चुनाव में दामन किसका मैला है अभी गर्त में है क्योंकि व्यापार को फलीभूत करने और 2018 के विश्वास पर कायम रहने के इस उपचुनाव में अर्ज, फर्ज और कर्ज की पूर्ति हो गई है। जो शरीर साथ लेकर चल रहे थे किन्तु दिमाग कही और चला रहे थे वह भी जीत के जश्न में शरीक हो रहे है। देखते है वरिष्ट नेताओ ने गांधारी का आवरण लपेटा हुआ है उससे कब बारह निकलते है नेता,,,
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