जबलपुर (ब्यूरो) - राज्य में साल में तीन बार यू ही दाम नहीं बढ़ रहे है। लगातार बढ़ रहे घाटे की भरपाई के लिए कंपनी की तरफ से विद्युत नियामक आयोग में दाम बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा जा रहा है। हाल ही में मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए बिजली दर निर्धारण की याचिका दी है। इसमें 3915 करोड़ रुपये का अंतर दिखाया गया है। इस अंतर की राशि में साल 2019 में हुए घाटे को भी जोड़ा गया है जो करीब दो हजार करोड़ रुपये है। इसी वजह से कंपनी ने इतने बड़े अंतर को खत्म करने के लिए 8.71 फीसद बिजली के दाम बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया है। ज्ञात हो कि बिजली कंपनी ने 2022-23 के लिए 48 हजार 874 करोड़ रुपये की जरूरत बताई है। इसमें आय में करीब 3915 करोड़ रुपये की कमी बनी हुई है जिसकी भरपाई के लिए कंपनी ने बिजली की दर को बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। वित्तीय वर्ष 2019-20 के राजस्व लक्ष्य में कंपनी को करीब दो हजार करोड़ रुपये की कम आय हुई थी। जिसे कंपनी इस साल उपभोक्ताओं से वसूलने की तैयारी में है। यदि इस राशि को अलग कर दिया जाए तो कंपनी का आय में अंतर 1900 करोड़ के आसपास पहुंच जाएंगा। जिससे आम उपभोक्ताओं पर बिजली के दाम का बोझ भी हल्का हो सकता है।
32 हजार करोड़ वसूला
बिजली कंपनी ने 2014 से 2018 के बीच हुए वित्तीय नुकसान की भरपाई विगत वर्ष कर ली है। कंपनी ने 2021-22 की बिजली दर निर्धारण याचिका में यह राशि का समायोजन कर लिया है। बिजली कपंनी की तरफ से दायर याचिका में करीब 32 हजार करोड़ बताया था। जिस पर मप्र विद्युत नियामक आयोग ने सुनवाई की थी। इस राशि में करीब 13 हजार करोड़ रुपये का समायोजन किया गया है। इसमें केंद्र की बिजली कंपनियों को नुकसान की भरपाई के लिए दी गई अनुदान योजना उदय में बड़ा हिस्सा समायोजित हुआ है। वहीं शेष राशि बिजली की दर निर्धारण में लिया गया। यही वजह है कि कंपनी को आयोग ने 17 दिसंबर 2020 को 1.98 फीसद दाम बढ़ाए थे। उसके पश्चात 2018-19 वित्तीय वर्ष का नुकसान जो सबसे ज्यादा बिजली कंपनी ने 7053.64 करोड़ रुपये बताया था। उसे उदय योजना के जरिए समायोजित कर कंपनी ने 314 करोड़ रुपये का लाभ जाहिर किया। जिस वजह से 30 जून 2021 को 0.69 फीसद दाम बढ़ाने की अनुमति दी थी।
4981 करोड़ फिर घाटा
बिजली कंपनी ने हाल ही में वित्तीय वर्ष 2020-21 में हुए घाटे के लिए विद्युत नियामक आयोग में 4981 करोड़ रुपये के अंतर की मांग याचिका लगाई है। आयोग ने याचिका को फिलहाल मंजूर कर लिया है। अब इस पर आगे सुनवाई होगी। इसमें पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी 2776 करोड़,मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी 1679 करोड़ तथा पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी 526 करोड़ रुपये का अंतर होना पाया है।
वित्तीय नुकसान का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। बिजली कंपनी के कुप्रबंधन की वजह ये आम जनता को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। कंपनियों को खर्च पर कटौती करनी चाहिए ताकि दाम बढ़ाने की नौबत न आए।
राजेंद्र अग्रवाल, सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता
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