खंडवा (ब्यूरो) - अपराधियों को जेल से छुड़ाने के लिए फर्जी ऋण पुस्तिका बनाकर जमानत लेने वाले हिस्ट्रीशीटर सहित दो आरोपियों को कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तार किया। आरोपियों के कब्जे से 150 से ज्यादा फर्जी ऋण पुस्तिका मिली है। 20 सालों से कोर्ट में फर्जी जमानत लेने का गौरखधंधा चल रहा था। जज ने इस मामले में खुद जांच की, उसके बाद फर्जीवाड़ा पाया तो कोतवाली में केस दर्ज करवाकर आरोपियों को गिरफ्तार करवाया। कोतवाली टीआई बलराम सिंह राठौर के अनुसार धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज कर आरोपी महेश निनोरिया निवासी खेड़ापति हनुमान मंदिर के सामने और आनंदराम पिता गड़बड़ निवासी छिरवेल, छैगांव माखन को गिरफ्तार किया है। आरोपियों के घरों की तलाशी ली तो उनके कब्जे से पुलिस ने 150 से ज्यादा ऋणपुस्तिका बरामद की है। प्राथमिक जांच में पता चला कि आरोपी महेश हिस्ट्रीशीटर रहा है। उस पर सैकड़ों मामले दर्ज है। महेश व आनंदराम का गिरोह पिछले 20 सालों से फर्जी ऋण पुस्तिका बनाने का धंधा कर रहा था। खुलासा तब हुआ जब उनकी ऋणपुस्तिका रेलवे मजिस्ट्रेट विष्णु प्रसाद सोलंकी की कोर्ट में पहुंची तो उन्हें शक हुआ। उन्होंने ऋण पुस्तिका की जांच की तो पता चला कि वह नकली है। फिर मजिस्ट्रेट ने खुद कोतवाली में शिकायत की। वहीं, कोर्ट में फर्जी जमानतदारों का जाल बिछाने वालों में रफीक, दिलीप, विजेंद्र नामक दलाल भी शामिल है। हालांकि, अभी ये लोग पुलिस की नजरों से बचे हुए हैं।
कोर्ट के स्टेटस पर होता था जमानत का सौदा
आरोपी कोर्ट के स्टेटस के आधार पर आरोपी की जमानत का सौदा करते हैं। न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी में चलने वाले प्रकरणों में पांच से दस हजार रुपए तक लेते हैं। जबकि, सत्र न्यायालय के प्रकरणों के लिए 20 से 50 हजार रुपयों की मांग की जाती थी। हाईकोर्ट में जमानत लेने के लिए एक से दो लाख रुपयों का रेट इन्होंने फिक्स कर रखा था। आरोपी गरीब किसानों को झांसे में लेकर उन्हें हजार दो हजार रुपए में ऋण पुस्तिका लेकर तीन से चार जमानत करवा लेते थे। फिर उसी पुस्तिका के आगे के पेज फाड़कर दूसरे पेज व किसी अन्य का फोटो चिपकाकर फर्जी ऋण पुस्तिका तैयार कर लेते थे।
गैंग के 10 से ज्यादा दलाल थाने व जेल के बाहर करते थे निगरानी
आरोपी महेश की मटन-चिकन की दुकान भी है। वकीलों ने बताया कि महेश सफेद शर्ट व काली पेंट पहनकर खुद वकील बनकर कोर्ट में घूमता था। उसकी गैंग में 10 से ज्यादा दलाल शामिल है। उनका काम यही रहता था कि वह जेल और थाने के बाहर आने-जाने वालों पर नजर रखते थे। आरोपियों के परिजन से संपर्क कर उन्हें जमानत करवाने का सौदा करते थे। वे नौसीखिए वकीलों को उसके केस देता था। इसके बदले में वह वकीलों को 200-300 रुपए दे देता था।
Comments
Post a Comment