सरकारी दफ्तरों से गायब हो रहे हैं दस्तावेज, राज्य सूचना आयोग के पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट बनाने का निर्देश
सरकारी दफ्तरों में किस तरह के दस्तावेज हैं
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि आयोग में दस्तावेजों के गायब होने के कई प्रकरण सामने आ रहे हैं। इन गायब कागजों की वजह से लोगों का जीवन और कैरियर तक दांव पर लग जाते हैं। किसी के जमीन के कागज गायब हैं तो नियुक्ति में गड़बड़ी के कागज गायब हैं। जांच संबंधित दस्तावेज गायब हैं। भ्रष्टाचार घोटाले से संबंधित प्रकरण में दस्तावेज गायब है। किसी व्यक्ति या संस्था को प्रभावित करने वाला कोई महत्वपूर्ण आदेश गायब है तो कहीं किसी शासकीय अधिकारी के विरुद्ध की गई कार्रवाई की कागज गायब है।
पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश पर सामने आए दस्तावेज
कई मामलों में जब आयोग ने संबंधित लोक प्राधिकारी को पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने को कहा तो गायब दस्ताजवे भी सामने आ गए। राहुल सिंह ने कहा कि गायब कागजों को लेकर अधिकारी उदासीन है। ऐसा नहीं है कि गायब कागजों की वजह से सिर्फ आम नागरिक परेशान होते हैं। रिकॉर्ड में लापरवाही का शिकार राजकीय अधिकारी और कर्मचारी भी हो रहे हैं। विभागीय रिकॉर्ड गुम होने से उन्हें सेवाकाल एवं सेवानिवृत्ति के समय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
जिस प्रकरण में आदेश हुए, उसमें आवेदन हो गया गायब
मजेदार बात यह है कि जिस अपील प्रकरण में राज्य सूचना आयुक्त ने सरकार को पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट लाने को कहा है, उस प्रकरण में आरटीआई आवेदन भी रिकॉर्ड से गायब मिला है। साथ ही जो जानकारी मांगी गई थी, उसके कागज तक नहीं मिले। मामले में जाति प्रमाण पत्र की जानकारी मांगी थी, जो कार्यालय से गायब मिला। पिछले तीन साल से इस प्रकरण में गुम कागज के लिए किसी की जवाबदेही भी तय नहीं हुई है। सूचना आयोग ने तीन दोषी एसडीएम अधिकारियों के विरुद्ध 58 हजार रुपये का जुर्माना किया है।
66 साल में पहली बार गायब दस्तावेजों की चिंता
मध्य प्रदेश राज्य के गठन से 66 साल बीतने के बाद पहली बार सामने आया कि राज्य में दस्तावेजों के रखरखाव, प्रबंधन के लिए पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट ही नहीं है। केंद्र एवं अन्य राज्यों का अपना पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट है, जिसके तहत कार्यालय में फाइलों का प्रबंधन सुनिश्चित होता है। जाहिर है कि राज्य के अधिकारियों ने गायब होते दस्तावेजों को कभी गंभीरता से नहीं लिया।
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