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जनजाति नेतृत्व को लेकर सियासत, आखिर कौन साधेगा? बीजेपी या कांग्रेस



भोपाल (स्टेट ब्यूरो) - मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समीकरण बिठाना शुरू कर दिए हैं. इसके साथ ही जातिगत आधार पर भी वर्गों को साधने की कोशिश लगातार जारी है. सूबे में सबसे महत्वपूर्ण है आदिवासी वर्ग इतिहास गवाह है कि आदिवासी वोट बैंक जिस पार्टी के साथ जुड़ा उसी ने मध्य प्रदेश में सत्ता पाई है. 2018 में जिस तरीके से बीजेपी को आदिवासी बाहुल्य इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था उसके बाद से वह इस बार बेहद सचेत नजर आ रही है. 2018 की हार के बाद से ही बीजेपी ने आदिवासी बाहुल्य इलाकों में पैठ बनाने को लेकर प्रयास शुरू कर दिए थे. यही कारण है कि जब मध्य प्रदेश में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई तो आदिवासियों के बड़े चेहरे विजय शाह, मीना सिंह और विसाहू लाल साहू को मंत्रिमंडल में जगह दी गई. इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने भी मध्यप्रदेश के आदिवासियों को साधने के लिए फग्गन सिंह कुलस्ते को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान दिया.

बीजेपी ने सुमेर सिंह सोलंकी को राज्यसभा में भेजा

वहीं 2020 में जब राज्य सभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने सुमेर सिंह सोलंकी को राज्यसभा में भेजा. इन सब चेहरों के दम पर बीजेपी 2023 के रण में आदिवासी वोट बैंक अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रही है. लेकिन बीजेपी के लिए परेशानी यह है कि भले ही उसने इन आदिवासियों को आगे बढ़ाया हो लेकिन यह सभी अपने अपने क्षेत्र तक सिमट कर रह गए हैं.

बीजेपी बोली उसके पास आदिवासी नेताओं की पूरी जमात है

बीजेपी के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि बीजेपी नेता आधारित दल नहीं है बल्कि कार्यकर्ता आधारित दल है. बीजेपी के पास आदिवासी नेताओं की एक पूरी जमात है. कांग्रेस के पास थके हुए आदिवासी चेहरे हैं. बीजेपी को पूरा विश्वास है कि उनका एक-एक कार्यकर्ता आदिवासी बाहुल्य इलाके में मेहनत करने में लगा हुआ है. बीजेपी ने जिस तरीके से आदिवासी वर्ग के लिए पेसा कानून से लेकर तमाम योजना शुरू की है उनके दम पर उन्हें पूरा भरोसा है कि जनजाति वर्ग उनके साथ खड़ा नजर आएगा.

कांग्रेस ने गिनाए ये घटनाक्रम

कांग्रेस प्रवक्ता आनंद जाट बीजेपी पर सवाल खड़े कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि बीजेपी भले ही आदिवासियों को साधने की कोशिश कर रही हो लेकिन आदिवासी वर्ग के साथ जो हुआ उसे भूल नहीं सकते हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से नेमावर में बीजेपी पार्टी से जुड़े लोगों ने आदिवासियों को गड्ढे में गाड़ दिया था वहीं सिवनी में बीजेपी समर्थक लोगों ने आदिवासी भाई बहनों को मॉब लिंचिंग का शिकार बनाया. ऐसे कई कारनामे हैं जिससे बीजेपी से आदिवासी वर्ग नाराज है.

कांग्रेस की उम्मीदें जवां हैं

कांग्रेस को उम्मीद है कि 2018 की तर्ज पर ही आदिवासी उनके साथ खड़े नजर आएंगे. इसके साथ ही उनका कहना है कि उनके पास आदिवासी नेताओं की लंबी फौज है. भले ही दोनों राजनीतिक दल अपने आप को आदिवासी हितैषी बताने में जुटे हुए हैं लेकिन आखिर मध्यप्रदेश का आदिवासी किसके साथ है यह तो 2023 विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही सामने आएगा.

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