आदिवासी कोटे से नौकरी लेकर धर्मांतरण करने वालों की बड़ी मुसीबत
भोपाल (स्टेट ब्यूरो) - मध्यप्रदेश की राजधानी में डिलिस्टिंग बिल जैसे अहम मुद्दे को लेकर अब प्रदेश भर का अनुसूचित जनजाति समाज आंदोलित हो उठा है. जनजाति सुरक्षा मंच अपने हक और अधिकार पाने के लिए आज राजधानी भोपाल में डी-लिस्टिंग गर्जना रैली निकालने वाला है. पूरे प्रदेश से अनुसूचित जनजाति समाज के लिए भोपाल आ रहे हैं. लोगों की मांग है कि जिनका धर्मांतरण हो गया है, उन्हें आरक्षण सुविधा से बाहर किया जाए. मध्यप्रदेश में धर्मांतरण के खिलाफ अब गुस्सा काफी बढ़ता जा रहा है. दरअसल आदिवासी कोटे से सरकारी नौकरी पाकर धर्मांतरण करने वालों की मुसीबत बढ़ने वाली है. आदिवासी धर्म त्यागकर दूसरे धर्म को अपना चुके लोगों को आदिवासी वर्ग के लाभ के दायरे से बाहर करने की मांग को लेकर राजधानी भोपाल में प्रदेश भर के आदिवसियों का जमघट सज चुका है. अब इसकी गुंज पूरे प्रदेश में सुनाई देगी.
धर्मांतरण वाले का क्या काम?
आदिवासी नेता संदीप कुलस्ते का कहना हैं कि जिन्होंने आदिवासी धर्म को ठुकरा दिया दूसरे धन को अपना लिया. वह आदिवासी कोटे का लाभ ले रहे हैं, जबकि वह अपना धर्म परिवर्तन कर चुके हैं. उन्हें आदिवासी कोटे से बाहर करने की मांग है. जनजाति सुरक्षा मंच की मांग है कि पुरखों की संस्कृति ही संविधान के हक का आधार है. धर्म परिवर्तन करके जिसने संस्कृति छोड़ दी, उन्होंने जनजाति की पहचान भी छोड़ दी. अब ऐसे लोग आरक्षण भी छोड़ दें. जो लोग जनजाति समाज के हैं, लेकिन वो मुस्लिम व ईसाई धर्म में अपनी आस्था रखते हैं, तो ऐसे लोगों को चिंहित करना ही डी-लिस्टिंग का मुख्य उद्देश्य है. कानून ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखता है, उन्हें वहीं रहना चाहिए.
आदिवासियों को भड़काया गया- कांग्रेस
एमपी में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में आदिवासी बीजेपी के खासे टारगेट पर हैं. आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी और खासकर संघ ने नई बहस शुरु की है. भोपाल में जनजातीय सुरक्षा मंच ने ऐसे लोगों को आदिवासियों की सूची से हटाने यानि डी-लिस्टिंग करने की मांग को जोर दे दिया है. वहीं इसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी में भी जुबानी जंग तेज हो गई. कांग्रेस का कहना है कि आदिवासी लोगों को बीजेपी ने भड़का दिया है. वहीं बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस धर्मांतरण की हितैषी है.
47 सीटों पर सीधा असर
मध्यप्रदेश में सत्ता की चाबी आदिवासी वोट बैंक से ही मिलती है. साल 2018 में आदिवासियों ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को खूब समर्थन दिया. जिसका नतीजा ये रहा कि 47 आदिवासी बहुल्य सीटों में कांग्रेस ने 30 सीटें जीत ली. जबकि भाजपा महज 16 सीटों पर सिमट कर रह गई. अब इसी के बाद भाजपा आदिवासी वोट बैंक को साधने में लग गई है. यहां तक की मोदी सरकार भी आदिवासियों पर ध्यान दे रही है. आयोजन कर रहे पदाधिकारियों का कहना है कि गांव-गांव में जाकर हम पंच से लेकर सांसदों और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर हमने समर्थन की मांग की है.
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