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भाजपा की सियासत में 'नमो' और "शिवाय" की बहस, क्या शिवराज हो सकते थे प्रदेश से अगले राष्ट्रिय नेतृत्व ?


 भोपाल (चक्र डेस्क) - 2013 का विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश में बेहद महत्वपूर्ण था। इसके दो बड़े कारण थे। एक तो शिवराज सिंह चौहान खुद को मध्य प्रदेश में बीजेपी का सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित करने की चाहत के साथ इस चुनाव में उतर रहे थे। दूसरा बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू हो गई थी। नरेंद्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री करने के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन बीजेपी का एक बड़ा तबका उनके खिलाफ किसी और को खड़ा करने की तैयारी कर रहा था। इसमें सबसे आगे शिवराज सिंह चौहान थे। चुनाव की तैयारी में लगी बीजेपी कुछ समय के लिए ओम नमः शिवाय और ओम नमो शिवाय में उलझ गई। इस शिव मंत्र को पार्टी के दो धड़ों ने नरेंद्र मोदी बनाम शिवराज सिंह चौहान का रंग दे दिया।

आडवाणी ने दी हवा

मोदी बनाम शिवराज की इस लड़ाई को हवा देने का काम किया बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने। उन्होंने ग्वालियर की एक सभा में कह दिया कि शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के नंबर वन मुख्यमंत्री हैं। आडवाणी ने यह कह तो दिया, लेकिन इससे मुश्किल शिवराज के लिए खड़ी हो गई क्योंकि उस समय तक बीजेपी का एक बड़ा तबका मोदी के समर्थन में खड़ा हो चुका था। शिवराज व्यक्तिगत रूप से ऐसी किसी तुलना के पक्ष में कभी नहीं रहे। उन्होंने सफाई देने के लिए कह दिया कि बीजेपी के नंबर वन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, दूसरे नंबर पर रमन सिंह और तीसरे नंबर पर वे हैं, लेकिन विवाद यहीं नहीं रुका।

मेनन के बयान से बढ़ा विवाद

इसका अगला चरण तब शुरू हुआ जब बीजेपी के तत्कालीन संगठन सचिव अरविंद मेनन ने कह दिया कि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का मंत्र होगा ओम नमो शिवाय। ओम नमो शिवाय या ओम ओम नमः शिवाय, बीजेपी का चुनाव अभियान इस शिव मंत्र में उलझ गया। लोगों का कहना था कि ओम नमो शिवाय में नमो पहले आता है। नमो का मतलब नरेंद्र मोदी है। इसका मतलब ये है कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पहले नंबर पर मोदी रहेंगे। यानी आगे मोदी रहेंगे और पीछे शिवराज चलेंगे। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि यह मंत्र ओम नमः शिवाय है जिसका नरेंद्र मोदी से कोई रिश्ता नहीं है। इस शिवाय का मतलब शिवराज है जो मध्य प्रदेश में बीजेपी के सर्वमान्य नेता हैं।

शिवराज ने बनाई दूरी

इस विवाद से सबसे ज्यादा मुश्किल शिवराज सिंह चौहान को हुई क्योंकि उन्हें लगा कि यह उन्हें मोदी के मुकाबले खड़ा खड़ा करने की एक रणनीति है। वे खुद इसके पक्ष में कभी नहीं थे। शिवराज ने दबी जुबान से कहा कि वह बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। मध्य प्रदेश में वह बीजेपी के नेता हो सकते हैं, लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व में जाने की उनकी कोई इच्छा नहीं है। उसके बाद पार्टी की ओर से भी सफाई दी गई। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने कहा कि मेनन हिंदी भाषी नहीं हैं। उनका उच्चारण ठीक ना होने के कारण कारण यह गलती हुई है। मेनन ने ओम नमः शिवाय कहा था, ओम नमो शिवाय नहीं। इस तरह शिव मंत्र से शुरू हुए इस विवाद का पटाक्षेप हो गया।

आगे भी जारी रही बहस

हालांकि, मोदी बनाम शिवराज का विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। यह तब तक चलता रहा जब तक कि 2014 में मोदी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार औपचारिक रूप से घोषित नहीं किया गया। इससे पहले तक बार-बार यह कहा गया कि गुजरात में मोदी ने अपने नेतृत्व में बीजेपी को लगातार जीत दिलाई है तो शिवराज ने यही काम मध्य प्रदेश में किया है। मोदी के आक्रामक चेहरे के मुकाबले शिवराज के सौम्य चेहरे को आगे आगे करने की कोशिश बीजेपी का एक बड़ा तबका उसके बाद भी करता रहा। हालांकि, यह रणनीति ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई। इसमें सबसे बड़ा योगदान खुद शिवराज सिंह चौहान का रहा। उन्होंने कभी यह कोशिश नहीं की कि वे मोदी के मुकाबले खड़े हों।

शिव की समझदारी, नरेंद्र सर्वमान्य

अच्छी बात यह रही कि 2013 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी को एक बार फिर जीत मिली। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के सर्वमान्य नेता के रूप में एक बार फिर से स्थापित हुए और एक साल बाद जब लोकसभा के चुनाव हुए तो नरेंद्र मोदी को पीएम फेस के रूप में आगे करके बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की। शिवराज ने अपनी ओर से कभी इसमें अड़ंगा लगाने की कोई कोशिश नहीं की। चाहे ना चाहे आज भी कई बार यह कोशिश होती है। बीजेपी का एक तबका अक्सर यह कोशिश करता है कि मोदी के मुकाबले शिवराज को खड़ा किया जाए, लेकिन ओम नमो शिवाय और ओम नमः शिवाय का यह मंत्र ना 2013 में शिवराज को उलझा पाया और ना ही वे आज इसमें उलझने को तैयार हैं।

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