उज्जैन (वरुण पिंडावाला) - उज्जैन स्मार्ट सिटी कंपनी की दो परियोजनाएं बड़ी गलती का शिकार हुई हैं। एक, 11 चौराहों के विकास की परियोजना और दूसरी, रामघाट सुंदरीकरण परियोजना। दोनों ही परियोजना का चलता काम अफसरों ने ऐसे रोका कि फिर दोबारा शुरू ही न हुआ। चर्चा है कि दोनों काम डीपीआर में त्रुटि-सुधार करने के उपरांत नए सिरे से निविदा प्रक्रिया कर शुरू कराएंगे, जिसमें परियोजना की लागत सवाया या दोगुना बढ़ना निश्चित है। मालूम हो कि उज्जैन स्मार्ट सिटी कंपनी ने ठीक दो वर्ष पहले शहर के 11 प्रमुख चौराहों- तिराहों के विकास एवं सुंदरीकरण की परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए ठेकेदार को कार्य आदेश दिया था। आदेश अनुुरूप भरत पुरी तिराहा, नीलगंगा तिराहा, इंजीनियरिंग कालेज तिराहा, गेल चौराहा, इस्को पाइप फैक्ट्री चौराहा, बीमा अस्पताल चौराहा, कोयला फाटक चौराहा, तीन बत्ती चौराहा, शांति पैलेस तिराहा, चामुंडा माता चौराहा, महामृत्युंज तिराहा का विकास कार्य साढ़े सात करोड़ रुपये से किया जाना जाना था। ये काम नगर निगम, परिवहन विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, भारत संचार निगम लिमिटेड सहित विभिन्न विभागाें के आपसी तालमेल से होना था।
ठेकेदार ने अफसरों द्वारा दी ड्राइंग-डिजाइन अनुरूप शांति पैलेस तिराहा और इंजीनियरिंग कालेज तिराहे पर काम शुरू कराया। काम ऐसे हुआ कि सड़क के बीच ही पानी भराने लगा। लोगों को स्पीड ब्रेकर भी रास न आए। लोगों ने इसे फिजूलखर्ची करार दिया। विरोध और आपत्ति के बाद अफसरों ने काम रूकवाया दिया। काम ऐसे रूका कि फिर दोबारा शुरू ही न हुआ। इस बात को लगभग डेढ़ वर्ष गुजर चुका है। इसके बाद गत वर्ष शिप्रा नदी का राम घाट किनारा आकर्षक बनाने काे कंपनी ने काम शुरू कराया। काम करने के लिए साइट क्लियर न मिलने और योजना में तकनीकी खामी पता चलने पर कंपनी ने महीनेभर बाद ये काम भी बंद करवा दिया। ये काम भी ऐसा रूका कि दोबारा शुरू न हुआ। तय योजना अनुरूप राणोजी की छत्री सहित घाट पर बने 80 मंदिरों को पुरातन स्वरूप में निखारने का काम होना था। एक मार्ग भी चौड़ा कर बनाया जाना था।
प्रवचन हाल और सामुदायिक भवन का निर्माण भी शुरू नहीं
इंदौर रोड स्थित मन्नत गार्डन वाली जमीन पर चार करोड़ रुपये से प्रवचन हाल और मोती नगर में चार करोड़ 40 लाख रुपये कम्युनिटी हाल बनाया जाना था। निर्माण के लिए गत वर्ष मुख्यमंत्री अद्योसंरचना मद से राशि स्वीकृत हुई थी। नगर निगम के अधिकारियाें ने बगैर कोई वक्त जाया कि उच्च शिक्षा मंत्री, विधायक, महापौर को बुलाकर निर्माण कार्य शुरू करने को भूमि पूजन करा लिया था। कहा था कि दोनों साैगातों का सुख अगले छह से आठ महीनों में नागरिकों को मिलने लगेगा। मन्नत गार्डन वाली जमीन पर प्रवचन हाल बनने से श्रद्धालु शिप्रा नदी किनारे प्राकृतिक वातावरण में प्रवचन सुनने का लाभ ले पाएंगे। मगर जब ठेकेदार काम करने पहुंचा था दोनों जगह जमीन विवाद खड़ा हो गया। बताया कि जहां प्रवचन हाल बनना है उसी जगह स्मार्ट सिटी कंपनी की मेघदूत वन सह पार्किंग परियोजना आकार ली जाना है। और जहां सामुदायिक भवन बनाया जाना है वो जमीन सेतु निगम की है। अब अफसरों का कहना है कि सेतु निगम से जमीन मिलने पर, प्रवचन हाल के लिए नई जगह चिहि्नत होने पर ही निर्माण शुरू होगा। मगर सवाल ये है कि ये कब होगा। क्योंकि आठ महीने तो गुजर चुके हैं। ये इतना लंबा वक्त है कि ठेकेदार चाहे तो कार्य अनुबंध निरस्त कर सकता है। कोषालय में जमा अपनी अर्नेस्ट मनी वापस मांग निगम पर कोर्ट केस लगा सकता है।
प्रोजेक्ट स्वीकृत करने से पहले सारे विषय क्लियर करना अफसरों की जिम्मेदारी
जमीन पर कोई विवाद तो नहीं है, प्रोजेक्ट के दूरगामी परिणाम क्या होंगे, प्रोजेक्ट स्वीकृत करने से पहले इन दो प्रमुख बातों का ख्याल रखना अफसरों की जिम्मेदारी है। मगर उज्जैन में ये परंपरा सी बन गई है कि इन दो बातों का ख्याल नहीं रखा जाता। राशि स्वीकृति के बाद भी माडल स्कूल, सीएम राइज जाल सेवा निकेतन स्कूल, प्रवचन हाल, सामुदायिक भवन, रामघाट सुंदरीकरण एवं 11 चौराहों के विकास की परियोजना का अटकना इसी का उदाहरण है।
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