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हिट एंड रन पर सख्ती से पहले व्यवस्थाओं की हो दुरुस्तगी



सुकून की बात है कि ट्रांसपोर्टरों की देश व्यापी हड़ताल खत्म हो गई। इससे भी अच्छी बात यह रही कि सरकार को जल्द समझ आ गया कि मामला हाथ से निकलता दिख रहा है। इधर देश भर के तमाम ट्रांसपोर्टर संगठनों को 'हिट एंड रन' मामले में सजा के नए प्रावधानों को लेकर न केवल काफी भ्रम था बल्कि खासकर ड्राइवरों की चिन्ता वाजिब थी। हो सकता है कि एकाएक सरकार के बैकफुट पर आने की वजह सामने आ रहे आम-चुनाव हों? लेकिन कानून के सबसे ज्यादा असर से डरे ड्राइवरों का डर और भविष्य कि चिन्ता भी नकारी नहीं जा सकती है। कम तनख्वाह, गरीबी गुजारा और साधारण रहन-सहन के चलते भारत के समकक्ष माने जाने वाले देशों के मुकाबले हमारे प्राइवेट ड्राइवरों की हैसियत एक मजदूर से ज्यादा नहीं है।  


भा
रत में हर साल करीब साढ़े 4 लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख मौतें होती हैं। जबकि हिट एंड रन से 25-30 हजार लोगों की जान चली जाती है। सच है कि दुर्घटना जानबूझकर कोई नहीं करता। लेकिन दुर्घटना के बाद ड्राइवर फरार हो जाते हैं क्योंकि यदि रुकेगा तो आसपास इकट्ठी हुई भीड़ बिना गलती जाने खुद ही फैसला करने लगती है। अनेकों उदाहरण सामने हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के बाद पकड़े गए ड्राइवर किस बुरी तरह पिटते हैं, उनकी मौत तक हो जाती है। कई बार लदा-लदाया वाहन समते ड्राइवर को जिन्दा तक जला दिया जाता है। ऐसे सार्वजनिक कृत्य करने वालों के खिलाफ अक्सर मामला तक दर्ज नहीं होता। ड्राइवर जान से हाथ धो बैठता है तो उसका परिवार अनाथ होकर दर-दर भटकने को मजबूर। 

भारत में करीब 1 करोड़ कमर्शियल वाहन हैं जिससे 20 करोड़ लोगों को काम मिलता है। ऐसे में हड़ताल होने से हुआ नुकसान समझ आता है। निश्चित रूप से सरकार द्वारा इस कानून पर सोच-विचार कर, ट्रांसपोर्टरों का पक्ष जानने की पहल अच्छी है। लेकिन यही काम पहले भी हो सकता था जब इसके संशोधन खातिर अमल में जुटे विशेषज्ञ और नौकरशाह दूर की सोचते। क्या उन्हें नहीं पता था कि ट्रांसपोर्टर संगठन कितना मजबूत है?  वाहनों के पहिए थम जाएंगे तो हालात कैसे बेकाबू हो जाएंगे? वही हुआ। यकीनन ट्रांसपोर्टेशन देश की अर्थव्यवस्था के साथ आम लोगों की सभी जरूरतों की पूर्ति करता है। सब्जी, भाजी, दूध, अनाज, दवाई और आम और खास सभी के आवागमन का जरिया भी है। ऐसे में हड़ताल से एक ही दिन में देश भर में महज पेट्रोल-डीजल की किल्लत तो सब्जियों के दूने भाव ने हालात कहां से कहां पहुंचा दिए सबने चंद घण्टों में देख लिया। 

यह सही है कि भारतीय न्याय दंड सहिंता में पहले हिट-एंड-रन जैसी घटनाओं खातिर कोई सीधा कानून नहीं था। जिसमें आरोपी पर आपीसी  को धारा 304 ए में अधिकतम दो साल की जेल या जुर्माने का प्रावधान रहा। लेकिन नई भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस  जो ब्रिटिश-कालीन भारतीय दंड संहिता की जगह बना, उसमें यदि ड्राइवर से गंभीर सड़क दुर्घटना होती है और वह पुलिस या किसी अधिकारी को जानकारी दिए बिना चला जाता है, तो उसे दंडित किया जा सकेगा। इसमें 10 साल तक की जेल और 7 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन बड़ा सवाल कि आरोपी ड्राइवर की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी, भले ही टक्कर सामने वाले की गलती से हुई हो? वहीं दुपहिया वाहन चालकों के मामले तो अक्सर सामने या साइड से आकर पीछे के चकों से दुर्घटनाग्रस्त होने के न जाने कितने मामले हैं। निश्चित रूप से हरेक में मौके पर आरोपी बड़ा वाहन वाला ही कहलाता है। लेकिन अक्सर देखने में आता है कि बड़े वाहन भी साइड देते समय सड़क नहीं छोड़ते हैं। सामने से आ रहा वाहन इस मुगालते में रहता है कि खाली सड़क है साइड मिलेगा। लेकिन पलक झपकते आमने-सामने आ जाते हैं और नतीजा गंभीर दुर्घटना में तब्दील हो जाता है। 

भारत में इस कानून में सुधार की दरकार जरूरी है। लेकिन सभी पहलुओं पर विचार के साथ।    दुनिया भर के कानूनों को भी देखना होगा जहां ड्राइवर बनना एक सम्मानजनक पेशा है। संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई में ऐसे मामलों में ड्राइवर को सबसे पहले गाड़ी से जुड़े दस्तावेज पुलिस को सौंपने होते हैं। अगर घटनास्थल पर पुलिस नहीं है तो 6 घंटे के अंदर जानकारी पुलिस को देनी होगी। देरी पर वजह बतानी होगी। यहां ड्राइवर को चार साल की जेल या उससे 44,44,353 रुपए बतौर जुर्माना वसूला जा सकता है। लेकिन एक्सीडेंट के कारण कोई घायल होता है और उसे हॉस्पिटल ले जाया जाता है तो दोषी ड्राइवर को 2 साल की जेल और 22 हजार रुपए तक जुर्माना वसूला जाएगा। कनाडा में ड्राइवर को 5 साल की जेल लेकिन एक्सीडेंट से मौत पर आजीवन कैद का प्रावधान है। गलत जानकारी देने पर जुर्मान बढ़ सकता है। अमेरिका में अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग नियम हैं। ड्राइवर की भूमिका से दुर्घटना की गंभीरता आंकी जाती है। इससे जुर्माना और सजा भी घट-बढ़ जाती है। जुर्माने के साथ 10 साल की जेल तक हो सकती है। ब्रिटेन में ड्राइवर के मौके पर रहना या भाग जाना भी सजा तय करता है। यहां अनिश्चित जुर्माने के साथ 6 माह की जेल का प्रावधान है। सबसे कम सड़क दुर्घटनाएं जापान में होती हैं। वर्ष 2020 में से केवल 3416 लोगों को ही अपनी गंवानी पड़ी। लेकिन अमेरिका, जापान, नार्वे, स्वीटडरलैंड जैसे विकसित देशों की तुलना हम बहुत पीछे हैं। यहां हिंट एंड रन से मौतों का आंकड़ा अत्याधिक है जिसकी वजह लापरवाही, गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के साथ सड़क नियमों का पालन नहीं करना है। इसमें सीट बेल्ट, हेलमेट नहीं पहनना तथा ओवरस्पीडिंग है जो कैमरों से पकड़ी जा सकती है तो नशे में गाड़ी चलाने वालों की जांच टोल नाकों पर ऑटोमेटिक मशीनें लगाकर की जा सकती हैं जो अगले पुलिस टीम, चौकी या उड़न दस्ते को संदेश भेज दे।  

यकीनन कानून में सुधार वक्त का तकाजा है। रही बात दुर्घटना करने वालों की पतासाजी की तो आजकल जगह-जगह सीसीटीवी लगे हैं, टोल नाके भी हैं। सबके साथ समन्वय बिठाकर भी आरोपी तक पहुंचा जा सकता है। जब बड़े-बड़े हाईवे और राजमार्गों पर अरबों रुपए खर्च होते सकते हैं तो क्या कुछ हजार और खर्च कर हर किलोमीटर पर सीसीटीवी नहीं जरूरी नहीं हो सकते? यकीनन तीसरी आँख और तकनीक की निगरानी से ड्राइवरों पर नकेल के साथ सुरक्षा भी दी जा सकती है जिसका सभी पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। जब व्यवस्थाएं दुरुस्त हो जाएंगी तो सख्त और प्रैक्टीकल कानूनों से भला कोई क्यों ऐतराज करेगा?




                                                                                                          -ऋतुपर्ण दवे

                                                                                    rituparndave@gmail.com 

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